तानसेन का जीवन परिचय
भारत में जब संगीत की प्रतियोगिता या संगीत के प्रेमी जो भी है सब ने तान सेन का नाम जरूर सुना होगा | उनकी मृत्यु के लगभग चार सौ साल बीत गए है मगर संगीत प्रेमियो को लगता है | जैसे कुछ सालो पूर्व उनकी मृत्यु हुई है | तानसेन का घर का नाम तन्ना मिश्र था और उनके पिता का नाम मकरंद पांडे था उनको कुछ लोग पांडे जी और कुछ लोग मिश्र जी के नाम से पुकारते थे। तानसेन की जन्म तिथि के विषय में अलग -अलग विद्वानों का अलग- अलग मत है। कुछ विद्वानों के मतानुसार उनका जन्म 1532 ईसवी में ग्वालियर से 7 मील बेहत ग्राम में हुआ था उनके जन्म के विषय में यह किवदंती है।
कुछ विद्वान् मानते है कि बहुत समय तक मकरंद पांडेय को संतान नहीं हुआ उस समय एक फ़क़ीर थे मुहम्मद ग़ौस। जिनके आशीर्वाद स्वरुप उनके घर में एक पुत्र पैदा हुआ जिसे प्यार से तन्ना के नाम से पुकारा जाता था। तन्ना अपने पिता मकरंद की इकलौती संतान के कारण उनका पालन पोषण घर के सभी वयक्तियो द्वारा बड़े लाड़ प्यार से हुआ तन्ना अपने बचपन में नटखट और उदंडी रहे।
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तन्ना को बचपन से ही दूसरो की नक़ल करने की आदत थी। जब तन्ना की बाल्य अवस्था थी उस समय तन्ना को पशुओ -पक्षियों तथा जगली जानवरो की विभिन्न बोलियों की सच्ची नक़ल करता था और नटखट प्रकर्ति का होने के कारण हिंसक पशुओ की बोली बोलकर लोगो को डराया करता था।
संगीत स्वामी हरिदास से मुलाकात की एक रोचक घटना -:
एक बार स्वामी हरिदास जी अपने शिष्य और मण्डली के साथ पास के जगल से गुजर रहे थे | उसी जगल में मौजूद तन्ना एक पेड़ की आड़ से शेर की बोली से उन्हें भयभित कर दिया | अतः स्वामी हरिदास और उनके शिस्य और मण्डली बहुत डार गई थोड़ी देर बाद हँसता हुआ तन्न स्वामी जी के सामने आया | स्वामी हरिदास जी उसकी प्रकृतिक प्रतिभा से बहुत प्रभबित हुए और उस बालक तानसेन के पिता के बारे में पुछा स्वामी जी तन्ना के पिता से मिलकर उसके संगीत सिखाने के लिए मांग लिया और अपने साथ बृन्दावन लेकर चलेगये | इस प्रकार तन्ना स्वामी हरिदास के साथ रहने लगे और लग -भग 8से दश वर्षो तक स्वामी हरिदास से संगीत की शिक्षा ग्रहण किया अपने पिता की बीमारी की खबर सुनकर तान सेन अपनी जन्म भूमि ग्वालियर अपने पिता के पास चले गये | कुछ समय बाद उनके पिता का स्वर्गवास हो गया कहा जाता है कि उनके पिता मरने से पहले तान सेन को बुलाकर कहा कि तुम्हरा जन्म मुहम्मद गौस के आशीर्वाद स्वरूप हुआ है | आप उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं करना |
उसके बाद तान सेन स्वामी हरिदास से आज्ञा लेकर मुहम्मद गौस के साथ रहने लगे | उनके पास् से कभी -कभी ग्वालियर की बिधवा रानी मृगनयनि का गायन सुनने के लिए उनके मन्दिर चले जाया करते थे | वहाँ पर रानी मृगनयनि की एक दासी थी जिसका नाम हुसैनी था वह बहुत सुन्दर थी उस दासी की सुन्दरता और संगीत ने तान सेन को अपनी ओर आकर्षित किया | जब ये बात रानी मृगनयनी को पता हुई तब रानी ने हुसैनी से तान सेन का विवाह करा दिया उसके बाद तान सेन के चार पुत्र हुए -सुरत सेन ,सरतशेन , तरंग सेन , और बिलाश खां उसके बाद सरस्वती नाम की एक कन्या हुई | जब तान सेन अच्छे -अच्छे गाना गाने लगे तो उस समय रीवा नरेश राम चन्द्र ने अपने दरबार में राज्य गायक के रूप में नियुक्ति कर लिया रीवा नरेश महाराज राम चन्द्र अपने दोस्त अकबर को खुश करने के लिए गायक तान सेन को उन्हें उपहार स्वरूप अकबर को भेट कर दिया | अकबर स्वयंम संगीत का बहुत बड़ा प्रेमी था वह तान सेन को पकर बहुत खुश हुआ और अकबर ने अपने नौ रत्नों में उन्हें शमिल कर लिया।
धीरे -धीरे अकबर तान सेन को बहुत मानने लगा जब अकबर के दरबार के अन्य गायक तान सेन से जलने लगे | तब उन लोगो ने तान सेन को खत्म करने की एक युक्ति निकाली सभी गायको ने अकबर बादशाह से एक प्रर्थना किया की तान सेन को दीपक राग बहुत अच्छा आता है सुना जाय और देखा जाय कि तान सेन के दीपक राग में कितना प्रभाव है | और उन लोगो ने अकबर बदशह को बताया की तान सेन के अलावा कोई दूसरा गायक इसे नहीं गा सकेगा | और यह बात बादशह अकबर के दिमाग में बैठ गई उसने दीपक राग गाने के लिए तान सेन को मजबूर किया | तान सेन ने बादशह अकबर को बहुत समझया कि दीपक राग के गाने का परिणाम बहुत खराब होगा किन्तु बादशाह अकबर ने तान सेन की एक ना मानी | जब बादशाह नहीं माना तब मजबूर होकर तान सेन को दीपक राग गाना पड़ा | दीपक राग गाते ही धीरे -धीरे गर्मी बढ़ने लगी और चारो तरफ से मानो आग की लपटे निकलने लगी जो दरबार में स्रोता गण थे वो मारे गर्मी के भाग निकले किन्तु तान सेन का शरीर भारी गर्मी से जलने लगा | उस दीपक राग की गर्मी को केवल मेघ राग से समाप्त कराया जा सकता था कहा जाता है कि तानसेन की पुत्री सरस्वती ने मेघ राग गाकर अपने पिता के जीवन की रक्षा की बाद में अकबर को अपनी हठ पर बड़ा पस्चाताप हुआ |
बैजू बावरा और तानसेन लगभग बराबर थे। कहा जाता है कि एक बार दोनों गायको में प्रतियोगिता हुई और उस प्रतियोगिता में तानसेन हार गए। इस के बाद तानसेन ने राज्य की तरफ से यह घोषणा करा दी थी कि तानसेन के अलावा राज्य में कोई भी व्यक्ति गाना ना गाये और अगर कोई भी व्यक्ति , अगर गाना गाता है तो तानसेन से पहले उसकी प्रतियोगिता होगी। जो गायक तानसेन से हार गया उस गायक को उसी समय मृत्यु दण्ड स्वीकार करना होगा। तानसेन की इस शर्त की वजह से बहुत सारे गायको की मृत्यु हुई। क्योकि कोई गायक उसे हरा नहीं सका। अंत में बैजू बावरा ने उसे परास्त किया लेकिन बैजू बावरा ने तानसेन को माफ़ करके अपने विशाल हृदय का परिचय दिया।
तानसेन ने शास्त्रीय संगीत के अनके रागों की रचना की जैसे – मियां की तोड़ी , मियां की सारंग, दरबारी कान्हड़ा ,मियां मल्हारे आदि। ऐसा माना जाता है कि तानसेन ने बाद में मुसलमान धर्म अपना लिया था। उन्होंने ऐसा क्यों किया विद्वानों के अपने -अपने अलग -अलग मत है। कुछ विद्वानों का मानना है कि गुलाम दौस की आज्ञा से वे मुसलमान धर्म अपना लिया था। कुछ विद्वानों का मानना है कि अकबर की पुत्री से शादी हुई थी। कुछ विद्वानों का कहना है कि तानसेन मुसलमान हुए ही नहीं थे।
तानसेन ने अपने पिता की आज्ञा के अनुसार फ़क़ीर गुलाम गौस की स्मृति में स्वयं के रचित रागो के नाम के आगे मियां शब्द जोड़ दिया था जैसे मियां मल्हार आदि। सन 1589 ईस्वी में दिल्ली में तानसेन की मृत्यु हो गयी और ग्वालियर में गुलाम गौस के बगल में उनकी समधि बनाई गई। प्रति वर्ष उनकी याद में ग्वालियर में उर्स मनाया जाता है। और शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
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