Jyotiba Rao Phule Biography
महाराष्ट्र की जन्मभूमि समाज सुधारकों की जन्मभूमि रही है। हिन्दू समाज में फैली सदियों पुरानी सामाजिक व्यवस्था जातिगत व्यवस्था चरम पर फैली हुई थी जिसमे कुरीतियाँ रूढ़िवादिता जन्म कअधार पर जातीय ब्यवस्था की जजीरो में कैद करके रख दिया था इन सदियों पुरानी सड़ी गली और रूढ़िवादी विचार धारा से उपर उठकर समाज के उत्थान के लिए विद्यासागर राजा राममोहन राय ,रानाडे , ईश्वरचंद ,ज्योतीबा फुले जैसे देश के महान समाज सुधारकों ने अपने -अपने समय में महत्पूर्ण योगदान किया उस समय में जो इन लोगो ने समाज के लिए कार्य किए वो कल्पनातीत थे – जैसे स्त्री शिक्षा , बाल विवाह , विधवाओं में मुंडन प्रथा , और सती प्रथा इन तमाम प्रकार की प्रथाओं का बहिष्कार किया। हम इन महान समाज सुधार को इनके योगदान को भुला नहीं सकते। आज हम इन समाज सुधारकों में से एक महान समाज ज्योतिबा फुले के संबंध में जानेंगे।
नाम – ज्योतिबा फुले
जन्म –11 अप्रैल 1827
पिता – गोविन्द राव
माता – चिमना बाई
पत्नी – सावित्री बाई
मृत्यु – 28 नवम्बर 1890
ज्योतिबा फुले का जन्म महाराष्ट्र के पुने शहर में हुआ था | जब ज्योतिबा एक साल के थे तब इनकी माता जी का स्वर्गवास हो गया था ज्योतिबा के पिता ने इनकी देखभाल के लिए एक महिला रख को लिया ज्योतिबा के सर से माँ का साया उठा तो एक देवी की छत्रछाया में पलने लगे | इनकी शुरुआती शिक्षा घर पर उसके बाद मराठी पाठशाला में हुई | उस समय पूना में रूढ़िवादिता कट्टरपंथी संकुचित विचारधारा के कारण शूद्र और नीची जाति के छात्रों को स्कूल से बाहर निकालने पर तुले हुए थे। इस कारण इनको स्कूल छोड़ना पड़ा।
लेकिन उनकी पढ़ने की जिज्ञासा बनी रही उनको साहित्य पढ़ने की बहुत लगन थी। वो गौतम बुद्ध , तुकाराम , कबीर , संत रैदास , आदि अन्य संतो का साहित्य बहुत रूचि से पढ़ते थे।
ज्योतिबा फुले का विवाह -: उन दिनों बाल विवाह महाराष्ट्र में सभी जातियों में प्रचलित प्रथा थी। इस प्रथा के कारण उनके पिता गोविन्द राव अपनी बिरादरी वालो के दबाव के कारण 14 वर्ष की आयु में ज्योतिबा का विवाह कर दिया उस समय उनकी पत्नी सावित्री बाई की आयु केवल 8 वर्ष थी। जिन रीति रिवाजो के अनुसार बाल -विवाह ज्योतिबा का हुआ था आगे चलकर उसी रीति रिवाजो का उन्होंने विरोध किया।
पुनः शिक्षा जारी किया -: उन्हीं दिनों ज्योतिबा को रात के समय बड़ी ध्यान से पढ़ते देखकर उनके दो पड़ोसी बहुत प्रभावित हुए एक थे ईसाई पादरी – लेजिट , दूसरे उर्दू -फारसी के शिक्षक गफ्फार बेग मुंशी दोनों लोग उस समय शोषित और नीची समाज के लोगो के शुभ – चिंतक थे। इन दोनों ने ज्योतिबा के पिता गोविन्द राव को समझाया इन दोनों लोगो की बात मानकर 14 वर्ष की आयु में ज्योतिबा को पुनः मिशन स्कूल में दाखिला गोविन्द राव ने अपने पुत्र का करवा दिया। जबकि ज्योतिबा को स्कूल छोड़े 3 वर्ष हो गए थे। लेकिन वार्षिक परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त किया और अपने शिक्षकों का मान बढ़ाया।
युवा ज्योतिबा के प्रगतिशील विचार और मनमाष्तिस्क वहाँ के पेशवाओ के उत्थान – पतन की जानकारी का काफ़ी प्रभाव पड़ा ज्योतिबा यह समझ गए कि अस्पृश्यता , जन्म से ऊच -नीच , जाति व्यवस्था के भेद भाव के रहते शूद्र और पिछड़े लोग आगे नहीं बढ़ सकते। ज्योतिबा को अपनी शिक्षा पूरी करने बाद कटु अनुभव हुआ।
ज्योतिबा का दढ़ृ विस्वास था कि नीची जातियों शुद्रो दलितों में शिक्षा के बिना कोई सुधार और चेतना नहीं आ सकती वह यह जानते थे कि दलित स्त्रियाँ बहुत नरकीय जीवन बिताती है। अगर इन स्त्रियों को शिक्षित कर दिया गया तो आने वाली पीढ़ियाँ देश का भविष्य बदल जायेगा। जिससे आने वाले समय में एक क्रांति की पौध तैयार हो जाएगी।
उस समय पूना या उसके आस पास कट्टरता ऊच नीच के कारण दलित शिक्षा , स्त्री शिक्षा की कोई बात सोच नहीं सकता था। उच्च वर्ग के लोग दलितों को शुद्रो को गुलामो से भी बदतर समझते थे। महाराष्ट्र की तरह पूरे समाज या पूरे देश में यही हालात थे। प्रतिज्ञा – ज्योतिबा ने दलितों और शूद्र और पिछड़ी जातियों को एक साथ लाने का प्रतिज्ञा किया और उनको शिक्षित करने का संकल्प लिया। अब तक महाराष्ट्र में अंग्रेजो के पैर पूरी तरह जम गए थे। अंग्रेज़ समझते थे जैसे -जैसे समाज में शिक्षा का विकास होगा तो ऊंच – नीच अंधविश्वास , कुरीतियाँ समाप्त हो जाएगी। ज्योतिबा का अपना विचार था की दलितों को आगे आकर स्वयं प्रयत्न करने होंगे क्योकि समाज में कुलीन और उच्च वर्ग जो ब्राह्मणवाद और पुरोहितवाद पीड़ित रहा है , शूद्र दलित, पिछड़े शोषितो को उनके अधिकारों से वंचित , लोगो को ऊपर उठने नहीं देंगे।
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