सन 1882 की बात है जब भारत सरकार ने विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन किया तो इससे पहले भारत के शिक्षा के प्रेमी महान समाज सुधारक ज्योतिबा राव फुले ने हंटर आयोग सुझाव प्रस्तुत किया।
ज्योतिबा फुले वह पहले भारतीय थे जिन्होने दलितों में बहुत जोर शोर से शिक्षा का प्रचार प्रसार के लिए भारत सरकार का ध्यान दलितों की शिक्षा की तरफ आकर्षित कराया। लार्ड रिपन के सामने में हंटर आयोग का गठन किया गया यह भारत में अंग्रेजो के द्वारा एक महत्वपूर्व प्रयास था।
इसका मुख्य उदद्येश्य 1854 के बुडस के शिक्षा नितियों मे सुधार का मुल्यांकन करना था। इस आयोग का यह लक्ष्य था कि भारत देश में शिक्षा की सही सही जानकारी एकत्र की जाये और उस स्थित का अध्ययन किया जाये और भारत के निवासियों के लिए व्यापक शिक्षा नीति निर्धारति की जाय।
ज्योतिबा राव फुले अच्छी तरह जानते थे कि भारत में जटिल सामाजिक जीवन में सदियों पुरानी दासता व व्यापक गरीबी धार्मिक कुरीतियों जाति पाति एवं विशेष सम्प्रदाय व छुआ छूत की भावना और काम करने वाली जातियों ने शिक्षा की मूल भूत कल्पना को ही खत्म कर डाला है न ही इनमें कोई चेतना न ही इनमें कोई उत्साह । जब तक इनमें सामाजिक संगठन और आर्थिक रूप से क्रान्ति नही आती तब तक ये शिक्षा के प्रति उदासीन ही रहेंगे।
अंग्रेजो द्वारा देश में सर्वे कराये जाने के बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में कोई अमुल चुल परिवर्तन नही किए गए। कुछ भारत के समाज सुधारको की कोशिशो से तथा इसाई मिशनरियों की धर्म के प्रचार की सम्भावना थोडे. विधालय खोले गये। लार्ड विलियम बैटिक के शासनकाल में ही शिक्षा की नीतियों में परिवर्तन लाया गया मैकाले इस अंग्रेजी शिक्षा के जन्मदाता थे।
इस शिक्षा नीति का मुख्य उदद्येश्य या भारतीयों के पश्चिम सभ्यता और वहां की संस्क़्रति के बारे में परिचित करवाना और अंग्रेजी शासन में नौकरियों के लिए भारतीय मूल के लोगो को तैयार करना उदाहरण के तैर पर कम्पनी ने 1836 तक 23 राजकीय स्कूल खोले कुछ इलाके में मण्डल बनाकर स्कूल खोले गये जिनका संचालन स्थानीय जमीदारों के सुपुर्द कर दिया गया। इन जमीदारों को अपनी आय का एक प्रतिशत इन शिक्षा स्कूलों पर खर्च करना था।
कम्पनी को 1853 में एक नया चार्टर मिला जिसमें यहां के निवासियों की शिक्षा की जानकारी और विकास की सही स्थिति की जानकारी लेने के लिए एक समिति की नियुक्ति की गयी थी। इस समिति की जांच के आधार पर ही 1854 में कम्पनी के संचालनों ने शिक्षा सम्बन्धी पत्रालियां भेजी जी बुडस डिस्पैच नाम से विख्यात हुई।
इसमें भारत के सभी नागरिको के लिए प्रारम्भ्िाक शिक्षा अनविार्य कर दिया तथा सस्ती शिक्षा प्रवधान एवं हर प्रांत में एक शिक्षा विभाग खोलने की सिफारिस बहुत महत्वपूर्ण की गई।
इसी प्रत्रावली के आधार पर सन 1857 में कलकत्ता बम्बई और मद्रास में विश्व विधालय की स्थापना हुई।
लेकिन बुडस डिस्पैच से कई साल पहले ज्योतिबा फुले अपने प्रयासो से महाराष्ट्र और विषेशकर पूना में सस्ती शिक्षा की पहल कर चुके थे। देश के अन्य प्रान्तो में देशी स्कूल जिन्हे सरकार ने खोला था वो स्कूल चले ही नही क्योंकि दलित शिक्षा पर किसी का ध्यान नही था।
एक ज्योतिबाफुले ही ऐसे थे जिन्होने अपने अलक प्रयासों से पूना जैसे शहर में घोर कट्टरवाद धार्मिक वाद के गढ में शिक्षा की गंगा बहा दी। जबकि इसाई मिशनरी प्रचारको के साथ शासन बल था और जैसे कि उनके पास काई कमी नही थी सभी प्रकार से सम्पन्न थे लेकिन ज्योतिबा तो इस अभियान में अकेले ही लगे थे।
हंटर आयोग ने जब पूना शहर का दौरा किया तो उस समय बहुत शिक्षित और सामाजिक लोगो ने अपने स्मरण पत्र प्रस्तुत किए उन लोगो में एक थे बी0 एस0 आप्टे जिन्होने मिशनरियों के शिक्षा के श्रोतो की कुछ आलोचना की और सरकार द्वारा अर्थिक सहायता राशि बन्द करने की मांग की थी।
एक ओर समानिति व्यक्ति एम0 एम0 कुठे दलित शिक्षा के प्रचार के बहुत विरोधी थे इन्होने आयोग के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करते हुए ये कहा था कि महार-भाग के शिक्षा के विधार्थियों में शिक्षा का प्रचार प्रसार की बाते बहुत ज्यादा की जा रही है। उसमें सरकार के कुछ अंग्रेजी अधिकारी और लोकल या कहें स्थानीय समाज सुधार का इसका बहुत ज्यादा प्रचार प्रसार कर रहे थे।
उनका निशाना मेजर कैडी और महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की ओर था। इस प्रकार वह अन्य ब्राहमण विद्वानो ने भी इन दोनो लोगो की बहुत आलोचना की और कहा इससे शास्त्रो जो वर्णित व्यवस्था का विरोधी कहा गया है।
ज्योतिबा फुले ने 19 अक्टूबर 1882 के हंटर आयोग के भेजे अपने प्रार्थना पत्र में लिखा कि हमने शिक्षा के लिए पूना और आस पास के जगहो पर काफी काम किया है और उन्होन इस बात का प्रमाण दिया कि शिक्षा पर जो पैसे खर्च हो रहा है उसका फायदा मात्र कुछ जातियों के लोगो को ही मिल रहा है और जो दलित है और जो गरीबी में जीवन यापन कर रहे है उनके बच्चे शिक्षा से पूर्ण रूप से वंचित है और जो पैसे वाले लोग है वही उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे है और भी अधिक पैसे वाले बनते जा रहे है।
इन लोगो को अपने काम करने वाले दलित भाइयों की जरा भी परवाह नही है। ब्राहमण वर्ग और शाहूकारों ने शिक्षा पर अपना पूरा अधिकार जमा लिया है।
इन पूर्ण रूप से शिक्षित भाग्य बताने वाले लोगो से पूछा जाए कि इन्होने देश में कितने दलित और गरीब लोगो के बच्चों के लिए अपने पैसों से स्कूल खोले है या इस के अलावा शिक्षा के लिए कोई अन्य कभी कोशिश की है ज्योतिबा फुले ने शिकायत किया कि केवल मुम्बई प्रांत में 10 लाख बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा नही मिल पा रही है।
इन्होने कहा शूद्रो, दलित, मेहनतकश के बच्चें को पीढी दर पीढ्ी शिक्षा प्राप्त नही होगी तो ब्राहमण वर्ग के दास बन कर रह जायेंगे। इसलिए भारत देश में प्रारम्भिक शिक्षा लागू की जानी चाहिए। ज्योतिबा फुले ऐसे भारतीय प्रथम व्यक्तिथे जिन्होने 12 साल तक के लिए सभी बालक एवं बालिकाओं के लिए अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की मांग की।
ज्योतिबा फूले ने हंटर आयोग से स्पष्ट रूप से बताया कि भारतवर्ष में जाति पात, छुआ छूत की जडें इतनी गहरी है कि उंची जाति के शिक्षक और विधार्थी दोनो ही दलित गरीब छात्रों से बहुत नफरत करते है और उन्हे शिक्षा के लिए अपमानित किया जाता है।
इस कारण महोदय इन दलितों के लिए अलग स्कूल खोले जाने चाहिए। मांग किया अंग्रेज सरकार से और इन दलित मजदूर शू्द्र जातियों के लिए सरकार की ओर से शिक्षा के अलग प्रबन्ध किया जाये और उस आयोग के सामने जोर देकर कहा कि हर जाति के शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिए ताकि वे दलित मजदूर किसान मेहनतकस निम्नवर्ग की जातियों के बच्चों से मिल सके। और ज्योतिबा फुले ने सुझाव दिया कि शिक्षा पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण होना जरूरी है क्योंकि यह समाज के विकास के लिए पहली सीढी है
ज्योतिबा फुले के विचार थे कि व्यक्तिगत या जातीय आधार पर कुछ लोगो द्वारा संचालित शिक्षा संस्थान दलित, और शूद्र जातियों के साथ न्याय नही कर सकते है और सस्ती शिक्षा पर भी बल दिया।
ज्योतिबा राव फुले का जीवन परिचय
हंटर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में प्राथमिक शिक्षा को विशेष प्रोत्साहन देने की सिफारिश की और आयोग के प्रवेट संस्थानों द्वारा संचालित विधालयों को वित्तीय सहयाता देने और स्कूल को मान्यता और शिक्षकों को ट्रेनिंग की व्यवस्था की जोर देकर सिफारिस की। ज्येातिबा फुले के विचारों और प्रार्थना पत्र से आयोग काफी प्रभावित हुआ।
लार्ड रिपन ने आयोग की लगभग सभी सिफारिस मान ली थी इस कारण जो प्रवेट स्कूल थे उनको स्थानीय स्वशासन की स्कूल का उत्तरदीकार मिल गया। इसी वर्ष पंचांग तथा 1887 में इलाहाबाद में विश्वविधालय की स्थापना की गई और अन्य प्रान्तो में विधालय खुले ।
दलितों की शिक्षा पर कितना पैसा खर्च किया गया एवं इन विधार्थियों की संख्या कितनी थी यह जानकारी काफी समय तक पता नही चली लेकिन भारत में शिक्षा प्रचार के लिए भारत सरकार और मिशनरी दोनो ही क्रत संकल्प हैं।
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