यह मंदिर डोरिक निर्माण पद्धति के आधार पर पत्थरो का बना हुआ हैं | इस मंदिर के संबन्ध में कई विद्वानो का कहना है कि ईसा २०० पूर्व अशोक के सुपुत्र महाराजा जन्तुक ने इसकी नीव डाली थी यह शंकराचार्य मंदिर श्रीनगर से लग़ भग 4 किलो मीटर दूर एक सांत दार्शनिक स्थान है इस मंदिर को श्रीनगर के प्र्त्येक भाग से देखा जा सकता है | इस मंदिर की ऊचाई काफी है इसी ऊचाई के कारण श्रीनगर के शहर से देखा जा सकता है और इस मंदिर की एक खास बात यह हे कि आप इस मंदिर पर खड़े होकर आप सारे शहर का दृस्य देख सकते है | इस मंदिर पर जाने के लिए दो रास्ते है जो आप को दुर्गा नाग यू एन ओ दप्तर से जाना है ये रास्ता लग भग ३.५ किलो मीटर की चढ़ाई है इस रास्ते से अगर आप जाते है तो आप को एक विशेष आनन्द मिलेगा और आप की सैर भी हो जायेगी और रास्ते में आप डल झील , चार मिनार , मुगल बागो का मनमोहक दृश्य भी देखते रहेंगे | गोपादारी या गुपकार टीले को शंकरा चार्य या तते -सुलेमान भी कहते है | यह स्थान श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में है | इसके साथ ही जब रवान पहाड़िया और नीचे डल झील और उत्तर में जेठ नाग और दछिण में जेहलम नदी है | इस मंदिर की मरम्मत समय -समय पर इस राज्य के कई राजाओ ने की है तथापि वर्तमान मंदिर सित्त राज काल के राज्य पाल शेख महीउद्दीन की देन है इन्होने ही यहां शिवलिंग स्थापित करवाया |
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