Amir Khusro Biography
महान संगीतज्ञ अमीर खुसरो का नाम संगीत प्रेमी कभी भी भुला नहीं सकते | संगीत को आधुनिक रूप प्रदान करने में अमीर खुसरो का बहुत बड़ा योगदान रहा है |
अमीर खुसरो का जन्म सन 1253 ईसवी में एटा जिला ,उत्तर प्रदेश के पटियाली नामक स्थान पर हुआ | उनके पिता का नाम अमीर मोहम्मद सैफ़ुद्दीन था। जो बलवान से पटियाली आकर बस गए थे। अमीर खुसरो तेज बुद्धि के व्यक्ति थे। अमीर खुसरो के पिता अमीर मोहम्मद के निधन के बाद उस समय गुलाम वंश के राजा गयासुद्दीन बलवन का उनको राजश्रय प्राप्त हो गया , वहाँ पर उनको साहित्य और संगीत के प्रति विशेष लगाव रूचि उत्पन हुई। कुछ दिनों तक अमीर खुसरो ने कई राज्य में अलग – अलग जगहों पर नौकरी की।
उसके बाद वह अल्लाउद्दीन ख़िलजी के पास चले गए अल्लाउद्दीन ख़िलजी स्वयं एक बहुत बड़ा संगीत का प्रेमी था। अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने अमीर खुसरो को राज्य का गायक नियुक्त कर दिया। अमीर खुसरो अल्लाउद्दीन ख़िलजी को शायरी और प्रतिदिन नए – नए ग़ज़ल सुनाते रहते थे। अल्लाउद्दीन ख़िलजी के दरबार में कई अन्य संगीतज्ञ थे लेकिन उन सभी संगीतज्ञ में अमीर खुसरो को दरबार में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
कुछ विद्वान् ऐसा मानते है कि जब अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने दक्षिण भारत के देवगिरी नामक राज्य पर विजय प्राप्त की तब अल्लाउद्दीन ख़िलजी के साथ में अमीर खुसरो भी गए थे। गोपाल नायक देवगिरी का राज्य गायक था। वहाँ पर उन दोंनो संगीतज्ञो के बीच में एक संगीत प्रतियोगिता आरम्भ की गई। जिसमे अमीर खुसरो ने छल -कपट करके प्रतियोगिता जीत लिया। खुसरो को गोपाल नायक की काबिलियत की सही परख थी। अतः उसे साथ में दिल्ली ले आया और गोपाल नायक के साथ रहकर संगीत के महत्पूर्ण कार्य किये जो इस प्रकार है |
अमीर खुसरो ने उस समय के लोगो की रूचि का अध्ययन किया और उसके अनुकूल नए वाद्य , राग , गीत और तालों की रचना की। आधुनिक काल में लोकप्रिय गीत – “छोख्याल” के अविष्कार करने का श्रेय उन्ही को जाता है। कुछ विद्वानों के कथानुसार उन्होंने छोटा ख्याल , कब्बाली तथा तराना तीनो का अविष्कार खुसरो ने किया। उनके सभी तराने प्रातः एक ताल में होते थे तथा उसमें फ़ारसी के शेर भी होते थे।
इसके अलावा अमीर खुसरो ने कई वाद्यों का जन्मदाता कहा जाता है , जो दक्षिण का वीणा था जिसमे चार तार होते थे उन चार तारो की जगह तीन तार लगाए और उसका नाम सहतार दिया ” सह ” का अर्थ फ़ारसी में तीन होता है। इसी सहतार का नाम धीरे -धीरे बदल कर सितार हो गया। तबले के संबंध में अमीर खुसरो को इसका अविष्कारक कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उसने पखावज को बीच से दो भागो में बांटकर तबले की रचना की। कुछ नए रागो एवं कुछ पुराने तालों की रचना किया। रागों में जैसे पुरिया , साजगिरी , पूर्वी , जिला , शहाना , आदि।
तालों में झुमरा , त्रिताल , आणा , चारताल , परतो , सूलफाक , आदि। मुख्य रूप उल्लेखनीय है। अमीर खुसरो कई भाषाओ का जानकार था। लगभग 12 वर्ष की उम्र से कविताए लिखता था। उसने बहुत सारी पहेलियाँ बनाई जिनमें से अधिकांश लगभग 750 वर्षो के बाद आज भी प्रचार में है। जैसे ………..
खेत में उपजे सब कोई खाये , घर में होवै घर खा जाये। फूट। …….
नीचे एक उदहारण और देखिये। …….
अचरज बगला एक बनाया , ऊपर निव तले घर छाया।
बास न बल्ली बंधन धने , कह खुसरो घर कैसे बने।।
बयां का घोंसला ……..
कुछ विद्वानों का मानना है कि उसने फ़ारसी और संगीत पर 90 किताबें लिखी जिनमें से कुछ ही उपलब्ध है सन 1334 में खुसरो के गुरु निजामुद्दीन औलिया का निधन हो जाने से उन्हें बहुत दुःख हुआ। उसी समय से समाज से अलग रहने लगे। उस्ताद के जाने के बाद अपना जीवन भार -स्वरुप लगने लगा और 1335 में उनकी मृत्यु हो गई। दिल्ली में उनकी कब्र उनके उस्ताद के पैरों की तरफ बनाई गई है। जहाँ पर आज भी कव्वाल लोग उनकी याद में उर्स मनाते है |
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