लखनऊ वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश की राजधानी है ये शहर नवाबों के नाम से और यहां की तहजीब से भी जाना जाता है। और यहां के खाने वाले व्यंजनों की अपनी अलग पहचान है।
इस लखनऊ शहर की जो एतिहासिक धरोहर है वह है यहां का बड़ा इमामबाडा जिसको भूल भुलैया के नाम से जाना जाता है यहां के लोगो का मानना है एक बार बादशाह आसफुउदौला के समय अकाल पड़ गया था उसी समय सन 1784 में इस इमामबाड़े का निर्माण करवाया था यह शहर अपने मुगल अंदाज नवाबों के समय से खाने के लिए और तहजीब अभी भी कायम है।
लखनऊ शहर नवाबों के समय से साहित्य, संगीत, नृत्य, कला और यहां शिल्पकला के कारण यहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। इस लखनऊ शहर में आज भी शास्त्रीय संगीत का बहुत बड़ा विधालय है जिसमें गयन, वाद, नृत्य की शिक्षा दी जाती है।
इस भूल भुलैया का जो उस समय निर्माण कराया गया था उस समय सीमेन्ट या सरिया का इसमें प्रयोग नही किया गया लोगो का मानना है कि इसमें उस समय की देशी सामग्री का प्रयोग किया गया जैसे चूना, उड़द दाल, गन्ने का शीरा, सुर्खी आदि चीजों का प्रयोग किया गया और इसमें जो ईट लगी है उसको लखोरी ईट के नाम से आज भी लोग जानते है।
इसमें एतिहासिक भूल भुलैया बनी है जिसमें एक जैसे रास्ते होने के कारण अनजान व्यक्ति प्रवेश करने पर रास्ता भूल जाता था इस भूल भुलैया की दीवारों की खासियत है अगर आप धीरे से बोलते है या माचिस से आवाज करते है तो दूसरे कोने तक सुना जा सकता है।
नवाब आसफुददौला ने उस समय सुरक्षा को ध्यान में रखकर ऐसा निर्माण कराया अगर कोई बाहरी गुप्तचर या दुश्मन का कोई भी व्यक्ति या गुप्तचर अगर किसी तरह धुस गया तो वह ज्यादा समय तक बच नही सकता है क्योंकि एक जैसे धुमावदार रास्ते है। इस भूल भुलैया की कलाकरी, नक्काशी देखने में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
इस विश्व प्रसिद्ध भूल भुलैया में एक गहरा कुआ है और कुंआ को देखने के लिए सीढ़ी बनी है कुंआ के अन्दर एक जैसे गेट दिखाई देते है यही सब बेहतरीन कलाकारी के कारण यही सब भूल भुलैया को खास बनाती है।
’’ और एक कहावत है कि जिसे न दे मौला उसे दे आसफुददौला’’
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